आजकल दिमाग, मन, बुद्धि सब कुछ लोकपाल बिल पर ही लगा हुया है, नहीं समझ आता क्या होने वाला है इस देश का । शर्म आती है इस देश के नेताओं की बेशर्मी पर, किस मुँह से वो इस बिल में बदलाव लाने की बात करते हैं, किस मुँह से वो इसे लागू करने से मना करते हैं, और क्यूँ अन्य नेता खुलकर इसका समर्थन नही कर पा रहे हैं क्यूँकि सब इक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं । फ़िर भी लोग जाग नही पा रहे, सोच नही पा रहे, समझ नही पा रहे कि क्या करना चहिये उन्हें, वो क्या कर सकते हैं, क्या करना होगा उन्हे इस देश के लिये । सब बस इन्तजार कर रहे हैं कि देखते हैं क्या होता है, ये बिल पास होता है या नहीं … कुछ फ़र्क पडता भी है या नही, बस जो काम में लगे हैं उनका निरीक्षण करते रहते हैं, और भबिष्यवाणियाँ करते रहते हैं ।
यही सब सोचते सोचते अनायास ही मुँह से निकल पडा –
जागो अब तो जागो, अब किसकी राह देखते हो ?
बीत गयी है रात, ये देखो भारत माँ आस लगाए है,
गये अवतार, गये युग चार, गयी क्रूरता भी अब हार,
अब भी तुम चुप बैठे हो, जब कोइ आग लगाए है ॥
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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --