आज सुना बलिदान हो गया एक महापुरूष, अपनी माँ, माँ गंगा के लिये, चुपचाप सो गया उसी माँ की गोद में, इस देश की अन्धी, बहरी, गूँगी राजशक्ति से लडते हुये ।
बलिदान हो गये स्वामी निगमानन्द जी, इसी 13 जून 2011 को, अपने 68 दिनों की भूख हडताल के बाद । यह हडताल गंगा माँ की रक्षा के लिये थी, गंगा में हो रही नाजायज खुदाई के विरुद्ध ।
किसी की नींद नही खुली, ना इस देश की बदहवाश, एक दिन की जिन्दगी के लिये जूझती सामान्य जनता की और ना ही सत्ता के मद में बेहोश पडे राजनेताओं की । मुझे पता है, इस बहरी राजनेताओं की जाति को जगाने के लिये एक धमाके की जरुरत है, मैं आपको जगाकर थोडा थोडा बारूद जमा करने की कोशिश मात्र कर रहा हूँ --
वाह रे मनु सन्तान, हुया एक और बलिदान, देश फ़िर भी ना जागा,
राजशक्ति बेहोश पडी, भारत माँ लाचार खडी, देश फ़िर भी ना जागा ।
गंगा बिलख पडी कि, हाय मर गया सपूत, देश फ़िर भी ना जागा,
इटालियन खडे सामने लूटें फ़िर से, माँ रो पडी, देश फ़िर भी ना जागा ॥
देश फ़िर भी ना जागा ।
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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --