Tuesday, May 3, 2011

My Readings: आत्मकथा : राम प्रसाद विस्मिल


         क्या लिखूं उसके बारे में, जिसके बारे में मैं कुछ नही जनता सिवाय इसके कि वो एक आंधी थी जिसने इस देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने की कोशिश करना सिखाया, स्वतंत्र भारत का स्वप्न दिखाया, गुलामों को मानव होने का एहसास दिलाया ।

         फ़ासी के तख्ते पर चढते हुये उनके अन्तिम शब्द थे …

मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे ,
बाकी न मैं रहूँ, न मेरी आरजू रहे ।
ज़ब तक कि तन में जान, रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे ।।






   तत्पश्चात उन्होंने कहा – “I wish the downfall of british empire. Jai Hind”

Inspiring lines by him …
महसूस हो रहे हैं बादे फना के झोंके ।
खुलने लगे हैं मुझ पर असरार जिन्दगी के ॥
बारे अलम उठाया रंगे निशात देता ।
आये नहीं हैं यूं ही अन्दाज बेहिसी के ॥
वफा पर दिल को सदके जान को नजरे जफ़ा कर दे ।
मुहब्बत में यह लाजिम है कि जो कुछ हो फिदा कर दे ॥
बहे बहरे फ़ना में जल्द या रव लाश 'बिस्मिल' की ।
कि भूखी मछलियां हैं जौहरे शमशीर कातिल की ॥
समझकर कूँकना इसकी ज़रा ऐ दागे नाकामी ।
बहुत से घर भी हैं आबाद इस उजड़े हुए दिल से ॥
सताये तुझको जो कोई बेवफा, 'बिस्मिल'
तो मुंह से कुछ न कहना आह ! कर लेना ॥
हम शहीदाने वफा का दीनों ईमां और है ।
सिजदे करते हैं हमेशा पांव पर जल्लाद के
यदि देश-हित मरना पड़े मुझको सहस्रों बार भी
तो भी न मैं इस कष्‍ट को निज ध्यान में लाऊँ कभी ।
हे ईश भारतवर्ष में शत बार मेरा जन्म हो,
कारण सदा ही मृत्यु का देशोपकारक कर्म हो ॥
मरते 'बिस्मिल' 'रोशन' 'लहरी' 'अशफाक' अत्याचार से ।
होंगे पैदा सैंकड़ों इनके रुधिर की धार से ॥
आत्मकथा:

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