हमारे मित्र आदर्श अवस्थी जी कहते हैं --
मधुबनो के साथ , कभी मरुस्थलों के साथ,
हम मुक्त घूमते हैं ,लेकिन बन्धनों के साथ ।
पूछा गया जो हाल ,तो हम मौन रह गए,
कैसे कहें कि.....चैन से हैं, मुश्किलों के साथ ।।
हम मुक्त घूमते हैं ,लेकिन बन्धनों के साथ ।
पूछा गया जो हाल ,तो हम मौन रह गए,
कैसे कहें कि.....चैन से हैं, मुश्किलों के साथ ।।
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प्रशंसा नहीं आलोचना अपेक्षित है --